रंग महल के,
दस दरवाजे तोड़ के,
पंछी तो उड़ गया,
पिंजरा को छोड़ के।।
तर्ज – कागा तो उड़ गया।
देखे – उड़ चल अपने देश पंछी रे।
ये दुनिया दो दिन का मेला,
समझो उड़ जाना है अकेला,
रिश्ते नाते यही पे रह जायेंगे,
तेरे सगे सम्बन्धी काम नही आयेंगे,
नेकी न करियो कभी भी तोल तौल के,
पँछी तो उड़ गया,
पिंजरा को छोड़ के।bd।
राम नाम है सबसे प्यारा,
मिल जाए वैकुंठ का द्वारा,
सुबह शाम आठों याम राम नाम कहिए,
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए,
प्रभु के दरस हो घुंघट पट खोल के,
पँछी तो उड़ गया,
पिंजरा को छोड़ के।।
सत संगत संतन की कर ले,
गुरु चरणन में चित को धर ले,
सतगुरु तुझको राह दिखाए,
जीवन के तेरे ‘राजू’ अंधेरे मिटाए,
माया नगरिया में इत उत डोल के,
पँछी तो उड़ गया,
पिंजरा को छोड़ के।bd।
रंग महल के,
दस दरवाजे तोड़ के,
पंछी तो उड़ गया,
पिंजरा को छोड़ के।।
लेखक / गायक – राजू बिदुआ।
देवरा छतरपुर।
मो. 9179117103