काशी विश्वनाथ महादेव,
को तू भैरू मतवाला,
उज्जैन नगरी में बैठ्यो,
पिये मद प्याला।।
ब्रम्हा विष्णु शिवजी में कुछ,
चाल रह्यो संवाद,
कुण बड़ो कुण छोटो,
तिन्या में सु कर्या विवाद,
चार वेद भी बोल्या सारा,
महादेव की बात,
ब्रम्हा जी को चौथो मस्तक,
उची बोली बात,
जद महादेव का गुस्सा सु,
थारो रूप हुयो काला,
उज्जैन नगरी में बैठ्यों,
पिये मद प्याला।।
ब्रम्हा जी का मस्तक ने वो,
काट लियो हांथा सु,
हाल गयो ब्रम्हाड,
भैरू जी का हलकारा सु,
ले हाथ मे मुंडी,
ब्रम्हा की वो बलकारा सु,
आ पहुँचो काशी में भैरू,
खेल रह्यो माथा सु,
जय जय महाकाल भैरू का,
गल में मुंडा की माला,
उज्जैन नगरी में बैठ्यों,
पिये मद प्याला।।
देवराज सेव्यमान पावनांघ्रिपंकजम।
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरं।
नारदादि योगिवृंद वंदितं दिगम्बरम।
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवम भजे।।
बावन भैरू नाच रह्या ये,
पीके मद का प्याला,
महादेव कंकाली का थे,
बावन भैरू लाला,
‘भवानी गुर्जर’ गावे,
पहरा दे विजय की माला,
बेरी दुश्मन देख रह्या छ,
टेड़ा टेड़ा साला,
आजा थान पर दुश्मन को,
मुंडो हो जाये काला,
उज्जैन नगरी में बैठ्यों,
पिये मद प्याला।।
काशी विश्वनाथ महादेव,
को तू भैरू मतवाला,
उज्जैन नगरी में बैठ्यो,
पिये मद प्याला।।
लेखक व गायक – भवानी सिंह गुर्जर।
(9929990990)
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