ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
बंसी बजाके रास रचाकर,
गोपी नचा के कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
माखन खाया मटकी फोड़ी,
छुपते छुपाते कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
भरी सभा मे द्रुपदसुता का,
चीर बढ़ा के कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
गाय चराई वंशी बजाई,
ग्वाल सखा संग कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
यमुना में जा गेंद उछाली,
नाग नथैया कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
अर्जुन का सब मोह मिटाके,
गीता गाके कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
तुम्हर पुकारे हम सब ‘राजेन्द्र’,
विश्व रूप तुम कहाँ चले,
ओ मन मोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
ओ मनमोहन कृष्ण कन्हैया,
हाथ छुड़ा के कहाँ चले।।
गीतकार/गायक – राजेंद्र प्रसाद सोनी।