साधो भाई मुर्दा देवे हेला,
जीवत मरज्यो,
ढील मत करज्यो,
सदा सुखी हुवैला।।
जीवतडा ने मार गिरावो,
सत का मारो सेला,
अहम हंकार शीश ने काटो,
दुजा शीश धरेला।।
काम क्रोध मोह की गर्दन,
काट करो नर गेला,
शील सन्तोष समता सत धारो,
समदम मार्ग पहला।।
जीवत मरो फिर मर कर जीवो,
ये मार्ग कठिन दुहेला,
शीश बिना जूंझे रण माही,
जम से युद्ध करेला।।
मौजीराम गुरु कृपा करके,
करृया ब्रहम सत मेला,
मन्दरूपराम मोह न जनमे,
नाहीं जन्म धरेला।।
साधो भाई मुर्दा देवे हेला,
जीवत मरज्यो,
ढील मत करज्यो,
सदा सुखी हुवैला।।
प्रेषक – अशोक वर्मा रघुनाथगढ़ सीकर।
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