मन मार सूरत घर लावो,
दोहा – मैं जाणु हरि दूर बसे,
हरि हिरदा रे माय,
आड़ी टाटी कपट री,
जासू दिखे नाय।
भाया मती रे जंगल में जावो,
मन मार सूरत घर लावो,
घर बैठा ही जोग कमावो ए हा।।
हर की माला ऐसे रठनी,
जैसे बरठ पर चढ़ गई नटणी,
काया उसकी मुश्किल ढबणी हा,
वारी सूरत बांस रे माय,
मन मार सूरत घर लावों,
घर बैठा ही जोग कमावो ए हा।।
जल भरवा ने गई पणिहारी,
सिर पर घड़ों घड़ा पर झारी,
दोनो हाथ बजावे ताली हा,
वारी सूरत घड़ा रे माय,
मन मार सूरत घर लावों,
घर बैठा ही जोग कमावो ए हा।।
गऊ चरवा ने गई ओ वन में,
बछड़ा ने छोड़ गई अपना भवन में,
गाय चरे बछड़ा की धुन में हा,
सांझ पड़िया घर आय,
मन मार सूरत घर लावों,
घर बैठा ही जोग कमावो ए हा।।
कहे सुखदेव सुणों मेरे वायक,
वायक बिना मिले नही पायक,
आया वायक झेलों पायक हा,
नूरा में नूर मिलावो भाई,
मन मार सूरत घर लावों,
घर बैठा ही जोग कमावो ए हा।।
भाया मती रे जंगल में जावो,
मन मार सूरत घर लावों,
घर बैठा ही जोग कमावो ए हा।।
गायक – सम्पत धनगर सनवाड़।
9636076537