घड़तारी अनमोलक हंस गमायो,
दोहा – मनक जुण अनमोल है,
नहीं आवेली फेर,
लाभ उठाले जुण का,
मती गमा तुं ऐल।
घड़तारी अनमोलक हंस गमायो,
अनमोलक रत्न गमायो,
बावलियां बेण्ड़ा घड़तारी।।
घड़तारी ², तुं नागर तुलसी क्यारी में,
तुं लाके धतुरा बोया रे,
बावलियां बेण्ड़ा घड़तारी।।
घड़तारी ², तुं गंगा जल घाघरियां में,
नशिलो जेर गरोलियो रे,
बावलियां बेण्ड़ा घड़तारी।।
घड़तारी ², परमेश्वर सिट गमाई,
तुं जग में वियो बदनामी,
बावलियां बेण्ड़ा घड़तारी।।
घड़तारी ², थुं छोड़ करम ने भागो,
थारे कर्म ही शंकर सेवा,
बावलियां बेण्ड़ा घड़तारी।।
घड़तारी ², थने किशन हेला पाड़े,
‘रतन’ ने राह बतावे,
बावलियां बेण्ड़ा घड़तारी।।
गायक व रचना – पंडित रतनलाल प्रजापति।