लीला अपरम्पार,
विंध्यवासिनी मात कल्याणी,
सुनो सुनो ऐ प्राणी जन,
महिमा जगदम्ब भवानी की,
जय विंध्यवासिनी माँ,
पर्वत निवासिनी माँ,
जय माँ जय माँ जय माँ।bd।
सिद्धपीठ ज्योतिर्य रूप माँ,
आदिशक्ति महारानी,
ममता दया क्षमा की मूरत,
कष्ट हरण कल्याणी,
बसी विंध्य पर्वत पर मैया,
ध्वजा गगन फहराए,
धोए पाँव निरंतर गंगा,
चंद्रकार लहराए,
शिव ब्रम्हादी देव मुनि गाए,
शिव ब्रम्हादी देव मुनि गाए,
कीर्तन सिंह वाहिनी के,
सुनो सुनो ऐ प्राणीजन,
महिमा जगदम्ब भवानी की।bd।
तीन अंक से श्रष्टि बनी है,
तीन देव पालनकर्ता,
तीन लोक है तीन श्वांस है,
तीन लोक शाशन कर्ता,
तीन रूप है अष्टभुजा,
कालिका विंध्य माँ शक्ति के,
तीनों तीन कोण पर बैठी,
न्योछावर है भक्ति के,
कुण्डलनी है इस त्रिकोण है,
कुण्डलनी है इस त्रिकोण है,
सिद्धपीठ महारानी के,
सुनो सुनो ऐ प्राणीजन,
महिमा जगदम्ब भवानी की।bd।
निराकार शक्ति है माँ,
पत्ता पत्ता ये जाने,
आये बन खप्पर वाली,
साकार रूप दर्शाने,
ममतामई विंध्य माता के,
चरण धूल जो पाए,
ये जीवन तो बने,
दूसरा जनम सफल हो जाए,
मुक्ति द्वार खोले बैठी माँ,
मुक्ति द्वार खोले बैठी माँ,
शरण पड़ो कल्याणी के,
सुनो सुनो ऐ प्राणीजन,
महिमा जगदम्ब भवानी की।bd।
सुनो सुनो ऐ प्राणी जन,
महिमा जगदम्ब भवानी की,
जय विंध्यवासिनी माँ,
पर्वत निवासिनी माँ,
जय माँ जय माँ जय माँ।bd।
स्वर – उषा जी मंगेशकर।