सत्संग में काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
सतगुरु आया भेद विचारी,
वांसे लेलो ओसत भारी,
औसत लेके करो त्यागी,
देईका दर्द विचार,
मेरम का लाटलो लाटा,
सत्संग मे काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
शिव शक्ति का मेला हो जावे,
अपनी अपनी खेती कमावे,
जेसा बोवे जेसा फल पावे,
कर लिदी रास त्यार,
कण मण का लाटिया लाटा,
सत्संग मे काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
भुखा ने भोजन करावे,
प्यासा ने प्रेम जल पावे,
प्रेम पलंग पर सेज बिछावे,
तन मन देवे चढाय,
काल करोद को डाटा,
सत्संग मे काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
जती सती मल धर्म चलावे,
माणक मोती लाल कमावे,
हिरा से नज हिरा कमावे,
बिणज करे व्यापार,
जम जाल को डाटा,
सत्संग मे काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
धनसुख राम मिल्या गुरु पुरा,
सेन बताई गुरु नुरां में नुरा,
केवल दास खेले संत सुरा,
निर्भय धारणा धार,
चरण पकड़िया काटा,
सत्संग मे काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
सत्संग में काई का घाटा,
ले लो वस्तु अपार।।
प्रेषक – प्रहलाद नाथ बागजणा।
9571438243