बोल पडी़ मन्दिर की देवी,
क्यों मंदिर म्ह आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।।
मेरी कढ़ाई देसी घी की,
मांँ नै सूखी रोटी रे,
घर म्ह मांँ का साझा कोनया,
क्यों तेरी किस्मत फूटी रे,
नजर मिलाणी छोड़ देई तनै,
नजर का टीका लाया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।।
जगमग जगमग जोत जगावै,
मांँ के पास अंधेरा रे,
वह भी माँ सै मैं भी मांँ सूं,
के तनै ना बेरा रे,
अपणी मांँ नै तु दमडी़ ना देता,
मांगण आया माया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।।
कड़वे कड़वे वचन बोल कै,
नरम कालजा छोलया रे,
एक सुणूं ना तेरी बेटा,
कौण से मुख तै बोलया रे,
मांँ ममता की मूरत हो सै,
नहीं समझ तेरै आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।।
सुणलयो रै भक्तों मांँ की वाणी,
माँ तो सभी के पास है,
जो भी माँ की सेवा करता,
मिलता उसे सुख सांस है,
वीरभान कहै ठोकर लागी,
फेर समझ म आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।।
बोल पडी़ मन्दिर की देवी,
क्यों मंदिर म्ह आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।।
गायक – कर्मवीर फौजी जागलान।
लेखक – वीरभान शास्त्री भाणा।
प्रेषक – गजेन्द्र स्वामी कुड़लण।