मैं उस गणपति को धाया जी,
जो निरालंब निराधार।।
जांके तात मात नही देखा,
वांके रूप वरण नही रेखा,
वे पूरण ब्रह्म अलेका जी,
सब जग सिरजन हार।।
वे पांच कोस के पारा,
जाने कोई जान न हारा,
वेदांत संत ललकारा जी,
है अजर अमर अवकार।।
है निज स्वरूप हमारा,
वे सब जग का आधारा,
इसमें नही और लगारा जी,
हम निश्चय किया है विचार।।
भारती परमानंद गुरु प्यारा,
मोहे पूरण किया ईशारा,
भारती चेतन करे है पुकारा जी,
या असली निज सार।।
मैं उस गणपति को धाया जी,
जो निरालंब निराधार।।
Singer – Om Bharti Ji Maharaj
Upload By – Shobharam
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