लज्या धर्म पर अमृत मेवा,
महा धर्म पर अमृत मेवा,
बन गया महल मलिचा,
कनीराम देख्या बाग बगीचा,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
पहली कली फुल चार दरशे,
बारह आठ बतीसा,
सोहगं वेल निज गगना में जावें,
पड़े पानी में पलीता,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
दुजी कली है दवादस उपर,
वाड़ी वरण वणी सा,
केर केवडो मरवो मोगरा,
भंवर वासना लेता,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
तीजी कली कण्ठ मुल कहीजे,
तीनों तार मली सा,
त्रिवेणी का रंग महल में,
एक में आण मिली सा,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
उड़द सुडद दोनों सेना कहिये,
ऊंचा जैसा नीचा,
नीचे ऊलाणी ने ऊंचे आवे,
जा अगम मिली सा,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
बीना पेड़ एक दरगत कांटों,
डाली पांच पचिसा,
वणा डाली पर कोयल बैठी,
उड़ बेगम में मिली सा,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
बागा में एक महल कहिए,
मेला में मन्दिर ऐसा,
वणा मन्दिर में मन्दरी कहिये,
आद स्वरूपी रेता,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
कृपा करो गुरु बागा मईने,
सूरता बहुत फिरी सा,
गुजर गरीबी में कनीराम बोलें,
चीजा अनन्त मीली सा,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
लज्या धर्म पर अमृत मेवा,
महा धर्म पर अमृत मेवा,
बन गया महल मलिचा,
कनीराम देख्या बाग बगीचा,
कनीराम देख्यां बाग बगीचा।।
गायक / प्रेषक – जगदीश चन्द्र जटिया।
मावली राजस्थान।
मो. 9950647154