अब तो आओ धनुष के धारी,
आकर के देखो मेरी लाचारी,
है बड़ी यहाँ दुखियारी,
है बड़ी यहाँ दुखियारी,
तुम्हारी जानकी,
तुम्हारी जानकी,
अब तो आओं धनुष के धारी।।
अशोक बन ये नहीं है प्रभु,
अशोक बन ये नहीं है प्रभु,
मैं शोक बन में रहती हूँ,
राम बाण के होते हुए,
मैं शब्दों के बाण सहती हूँ,
आज तो है जीवन से हारी,
आज तो है जीवन से हारी,
तुम्हारी जानकी,
तुम्हारी जानकी,
अब तो आओं धनुष के धारी।।
देखो स्वयं ही आके प्रभु तुम,
देखो स्वयं ही आके प्रभु तुम,
मुझ पर बिता क्या है,
कल तक थी जो महलों की दुल्हन,
आज वो सीता क्या है,
सहती है संकट पर्वत से भारी,
सहती है संकट पर्वत से भारी,
तुम्हारी जानकी,
तुम्हारी जानकी,
अब तो आओं धनुष के धारी।।
अब तो आओ धनुष के धारी,
आकर के देखो मेरी लाचारी,
है बड़ी यहाँ दुखियारी,
है बड़ी यहाँ दुखियारी,
तुम्हारी जानकी,
तुम्हारी जानकी,
अब तो आओं धनुष के धारी।।
स्वर – दिनेश भट्ट।