जख्मो पे श्याम मेरे,
मरहम लगाने आजा।
दोहा – तक़दीर का हूँ मारा श्याम,
मुकद्दर भी ये सो गया,
दुनिया के दुःख दर्दो से मेरा,
जख्मी दिल हो गया।
जख्मो पे श्याम मेरे,
मरहम लगाने आजा,
दुनिया का हूँ सताया,
अपना बनाने आजा।।
ठोकर मिली जहां की,
अपनों ने साथ छोड़ा,
होने लगे पराये,
यारों ने नाता तोड़ा,
दिल पे लगी है चोटें,
इनको मिटाने आजा,
ज़ख़्मों पे श्याम मेरे,
मरहम लगाने आजा।।
मुश्किल की इस घडी में,
कोई साथ ना निभाए,
खुद मेरी बेबसी ही,
मेरा जिगर जलाये,
अग्नि लगी है राहों में,
इसको बुझाने आजा,
ज़ख़्मों पे श्याम मेरे,
मरहम लगाने आजा।।
अरमान मेरे सारे,
अश्क़ों में बह रहे है,
रो रो के तुमको बाबा,
हर अश्क़ कह रहे है,
‘मीतू’ दरश का प्यासा,
दर्शन दिखाने आजा,
ज़ख़्मों पे श्याम मेरे,
मरहम लगाने आजा।।
ज़ख़्मों पे श्याम मेरे,
मरहम लगाने आजा,
दुनिया का हूँ सताया,
अपना बनाने आजा।।
लेखक व गायक – मीतू पंडित जी।
(भिवानी) मो. – 9729176791