मुझपे बाबोसा तू,
अपनी महर करना,
जब तक जियूँ मैं,
तू अपनी नजर रखना,
मुझ पे बाबोसा तू,
अपनी महर करना।।
तेरे दर्शन के,
प्यासे रहे मेरे नैन,
तुझ बिन मुझको,
मिले न कहीं चेंन,
मेरी भक्ति में,
मधुर भाव रखना,
मुझ पे बाबोसा तू,
अपनी महर करना।।
झूठी दुनिया को,
मारके ठोकर,
तेरी चोखट पे,
आया सब खोकर,
मेरे अच्छे बुरे,
की तू खबर रखना,
मुझ पे बाबोसा तू,
अपनी महर करना।।
तेरी भक्ति में सदा,
रहूँ मैं मगन,
मुझको इतना,
वर दो भगवन,
तेरे चरणों में मुझे,
उम्रभर रखना,
मुझ पे बाबोसा तू,
अपनी महर करना।।
‘दिलबर’ दिल की,
यही आरजू हो,
जब जब जन्म लूँ,
तेरी जुस्तजु हो,
मेरे लिए तू अपना,
दर खुला रखना,
मुझ पे बाबोसा तू,
अपनी महर करना।।
मुझपे बाबोसा तू,
अपनी महर करना,
जब तक जियूँ मैं,
तू अपनी नजर रखना,
मुझ पे बाबोसा तू,
अपनी महर करना।।
गायिका – संचारी बोस।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365