जब सिर पे गुरु जी का हाथ,
दोहा – गुरू समरथ सिर पर खड़े,
कहा कमी तोहि दास,
रिध्दि सिध्दि सेवा करै,
मुक्ति न छाड़ै पास।
गुरु की आज्ञा वही,
और गुरु की आज्ञा जाए,
कहे कबीर ता दास को,
तीन लोक भय नाहि।
जब सिर पे गुरु जी का हाथ,
फिर मन तोहे चिंता काहे की,
फिर मन तोहे चिंता काहे की,
फिर मन तोहे चिंता काहे की।।
गुरु अपनी शरण लगाए लेंगे,
चरणों में तुझे बिठाये लेंगे,
और ऐसे है दीन दयाल,
फिर मन तोहे चिंता काहे की।।
मेरे सतगुरु मथुरा काशी है,
सत चेतन घन आनंद राशि है,
और ऐसे है गरीब नवाज़,
फिर मन तोहे चिंता काहे की।।
भव सागर एक नदियाँ गहरी,
इसमें डूब रहे नर नारी,
तेरा बेडा करेंगे पार,
फिर मन तोहे चिंता काहे की।।
हंस वंश का लगा है मेला,
गुरु पूजा की यही शुभ बेला,
अब आ गए हंस के लाल,
फिर मन तोहे चिंता काहे की।।
जब सर पे गुरु जी का हाथ,
फिर मन तोहे चिंता काहे की,
फिर मन तोहे चिंता काहे की,
फिर मन तोहे चिंता काहे की।।
स्वर – गोपाल भाई।
मानव उत्थान सेवा समिति।
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)।