कंचन मृग बनकर आया,
सिय का अपहरण कराने,
माया का मारीच चला,
मायापति को भटकाने।।
सीता बोली वो देखो,
स्वामी है मृग कंचन का,
लाएं चर्म निशान रहेगा,
चौदह बरस गमन का,
सिय माया की माया का मृग,
सिय माया की माया का मृग,
लगे राम मुसकाने,
माया का मारीच चलां,
मायापति को भटकाने।।
माया सोना है इसके,
आगे ये जगत खिलौना,
कितने लोगों को जीवन भर,
सोने दिया ना सोना,
राम चले सोने के पीछे,
राम चले सोने के पीछे,
हम सबको समझाने,
माया का मारीच चलां,
मायापति को भटकाने।।
मायापति को भी वन में,
इतना दौड़ाई माया,
इसीलिए जीवन में कही,
पड़े ना माया की छाया,
रही नचा रहा जो जग को,
उसे माया चली नचाने,
माया का मारीच चलां,
मायापति को भटकाने।।
कंचन मृग बनकर आया,
सिय का अपहरण कराने,
माया का मारीच चला,
मायापति को भटकाने।।
Singer – Rupesh Kumar
7004825279