सुमिरन बिन सुन्दर काया,
कहो सजन किस काम की,
सुमिरण बिन सुन्दर काया।।
सुन्दर तन हरि में नहीं सुरती,
जैसे बनी पत्थर की मुर्ती,
भुसती कुतिया गांव की,
भुस भुस के नगर जगाया,
सुमिरण बिन सुन्दर काया।।
ज्ञान सुणिया बिना श्रवण कैसा,
भुमि बीज पड़िया बिन जैसा,
तुझे कदर नही है काम की,
नर बिरथा जन्म गमाया,
सुमिरण बिन सुन्दर काया।।
दिपक बिना सोभा ना भवन की,
धर्म बिना सोभा ना धन की,
अपने स्वार्थ कारणे,
नर तजदा माल पराया,
सुमिरण बिन सुन्दर काया।।
कहे सुखराम पार जायेगा कबतक,
जिवणो हे साँसों के अबलक,
थारी काया पुतली चाम की,
काँई अमर पटा लिखवाया,
सुमिरण बिन सुन्दर काया।।
सुमिरन बिन सुन्दर काया,
कहो सजन किस काम की,
सुमिरण बिन सुन्दर काया।।
गायक – शंकर जी मारसाहब थांवला।
प्रेषक – भंवरलाल।
9890550772