बता तेरे मुख को कौन खोलता है,
मुख बोलता है या तू बोलता है,
बता तेरें मुख को कौंन खोलता हैं।।
ये मैं मैं की आवाज आती कहाँ से,
कौन है वहाँ वाणी है आती जहाँ से,
कुछ तो बता प्यारे गर तुझको पता है,
मुख बोलता है या तू बोलता है,
बता तेरें मुख को कौंन खोलता हैं।।
पैर तुम खुद हो या पैर है तुम्हारे,
सूझबूझ करके समझा दे प्यारे,
पैर डोलते है या तू डोलता है,
मुख बोलता है या तू बोलता है,
बता तेरें मुख को कौंन खोलता हैं।।
ये कांटे तराजू जो हाथों में तेरे,
सोच समझकर उत्तर दे रे,
हाथ तोलते है या तू तोलता है,
मुख बोलता है या तू बोलता है,
बता तेरें मुख को कौंन खोलता हैं।।
‘भिक्षु’ कहे ज्ञान जिसको नहीं है,
चौरासी चक्कर में पड़ता वही है,
जन्मे मरे या ये किसकी खता है,
मुख बोलता है या तू बोलता है,
बता तेरें मुख को कौंन खोलता हैं।।
बता तेरे मुख को कौन खोलता है,
मुख बोलता है या तू बोलता है,
बता तेरें मुख को कौंन खोलता हैं।।
स्वर – पूज्य राजनजी महाराज।
रचना – पूज्य गीतानन्दजी महाराज(भिक्षु जी)