आराधे पधारो मैया होवे निज आरती,
कविजन कीरति गान करे,
जसोल री धणियाणी,
कुंवर लाल बन्ना री जननी,
दर पर कुमकुम चरण धरे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
परगट जोत अवल हुई पूजा,
धन धन जग अवतार धरे,
संत सुख कारणी संकट संहारणी,
कर किरपा कल्याण करे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
पूरब कवल असल परमाणा,
वचन चंद्रावळ रूप वरे,
संतशिरोमणी रूपांदे समोवड़,
धन जादम कुळ जनम धरे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
जोगीदास कुंवरी पूजाणी जगत में,
सरूपां भटियाणी नित नाम सरे,
भोमिया सवाईसिंह संग में भणीजै,
हाजिर परचा पीड़ हरे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
रजवट धर्म कल्याण कंत रमणी,
केशर वरणी राज करे,
दोऊ पख ऊजळ बखाणे सारी दुनिया,
भगत साधक मन मोद भरे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
जळहळ भळकै देवळ ज्योती,
फरहर धजा गगन फहरे,
झणणण नाद शंख धुन झालर,
घमम नगारा ढोल धुरे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
सुमरत कौम छत्तिसोई सेवक,
थानक दरस्या नैण ठरे,
राजा रंक भजै सब रैयत,
कर वंदन जयकार करे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
काटो कष्ट जगत कल्याणी,
भजन कियां भण्डार भरे,
मेहर करो मां मौत्यांवाळी,
कवि ‘काळू’ अरदास करे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
आराधे पधारो मैया होवे निज आरती,
कविजन कीरति गान करे,
जसोल री धणियाणी,
कुंवर लाल बन्ना री जननी,
दर पर कुमकुम चरण धरे,
आराधे पधारो मईया होवे निज आरती।।
स्वर / रचना – श्री कालूसिंह गंगासरा।
प्रेषक – मालचन्द सारस्वत तावणीया।
9166267551