है मात पिता उपकारी,
महिमा है इनकी न्यारी,
मुझे इस दुनिया में लाकर,
मेरी जिंदगी सँवारी,
ये मात पिता मेरे भगवान है,
इनसे ही मेरी पहचान है।।
तर्ज – सूरज कब दूर गगन से।
जन्म के दाता मात पिता,
मैं दिल में इन्हें बसाऊँ,
रोज सवेरे हाथ जोड़ मैं,
चरणों मे शिश झुकाऊं,
इनके उपकारों से में,
सही इंसा बन हूँ पाया,
ये उंगली पकड़ कर मेरी,
चले साथ में बनके साया,
ये मात-पिता मेरे भगवान हैं,
इनसे ही मेरी पहचान है।।
इस धरती पर मात-पिता के,
जैसा कोई न दूजा,
तीन लोक के नाथ स्वयं भी,
करते है जिनकी पूजा,
करके सेवा हम इनकी,
हर सुख जीवन मे पाये,
हम भूल से भी कभी ना,
दिल इनका नही दुखाये,
ये मात-पिता मेरे भगवान हैं,
इनसे ही मेरी पहचान है।।
स्वर्ग की खोज में क्यो तू भटके,
स्वर्ग है इस धरा पर,
मात-पिता जिस घर मे हो,
स्वर्ग तो होता वहाँ पर,
ये कहते ज्ञानी ध्यानी,
शिल्पा की सुनलो जुबानी,
है अन्नंत इनकी महिमा,
शब्दो मे न जाये बखानी,
ये मात-पिता मेरे भगवान हैं,
इनसे ही मेरी पहचान है।।
है मात पिता उपकारी,
महिमा है इनकी न्यारी,
मुझे इस दुनिया में लाकर,
मेरी जिंदगी सँवारी,
ये मात पिता मेरे भगवान है,
इनसे ही मेरी पहचान है।।
गायिका – शिल्पा जी बोथरा।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365