नाचण लाग्यो रे वैरागी मन,
झूमण लाग्यो रे वैरागी मन,
तपस्वी चंद्र रत्न सागर सुरिस्वर,
करे वंदन हम आपको गुरूवर,
करे तपस्या तपस्वी बने,
268 ओली गुरु पूर्ण करे,
अपनी आत्मा का उद्धार करे,
गुरु गच्छ का नाम रोशन करे,
तपस्वी चंद्र रत्न सागर सुरिस्वर,
करें वंदन हम आपको गुरूवर।।
तर्ज – आज उनसे मिलना है।
जिनतीर्थ के नंदन महके ज्योचंदन,
जिनशासन के दिव्य सितारे है,
जितरत्न सुरिस्वर के लघु भ्राता,
मंडोवरा कुल के उजियारे है,
तप ही जिनकी है साधना,
तपमय करते है आराधना,
करते है प्रभु से यही प्रार्थना,
तप करता रहूँ यही कामना,
तपस्वी चंद्र रत्न सागर सुरिस्वर,
करें वंदन हम आपको गुरूवर।।
32 वर्षो में 100 ओली की,
आपने की जो आराधना,
सागर समुदाय में ऐसे तपस्वी,
गुरुदेव श्री की अनुमोदना,
वर्धमान तप युग प्रभावक की,
दौलत गुरूवर से पदवी मिले,
“दिलबर” गुरु भक्तो के दिल में,
कहे ‘त्रिलोक’ संयम दीप जले,
तपस्वी चंद्र रत्न सागर सुरिस्वर,
करें वंदन हम आपको गुरूवर।।
नाचण लाग्यो रे वैरागी मन,
झूमण लाग्यो रे वैरागी मन,
तपस्वी चंद्र रत्न सागर सुरिस्वर,
करे वंदन हम आपको गुरूवर,
करे तपस्या तपस्वी बने,
268 ओली गुरु पूर्ण करे,
अपनी आत्मा का उद्धार करे,
गुरु गच्छ का नाम रोशन करे,
तपस्वी चंद्र रत्न सागर सुरिस्वर,
करें वंदन हम आपको गुरूवर।।
गायक – श्री त्रिलोक जी मोदी अहमदाबाद।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
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