छोड़ जगत ने आया दर पे,
अपणे गले लगाले माँ,
इस तंग हाली जिन्दगी से तू,
मुझको आज बचाले माँ।।
तर्ज – फूल तुम्हे भेजा है।
लेण देण न कुछ ना धोरै,
मार दिया कंगाली न,
तेरे दर से आस मनै बस,
दूर करो कंगाली न,
हार लिया दूख भोग भोग मैं,
मनै अपणे पास बूलाले माँ,
इस तंग हाली जिन्दगी से तू,
मुझको आज बचाले माँ।।
घर म कोन्या बून्द तेल की,
क्यूकर जोत जलाऊँ मैं,
एक जगह मन डटता कोन्या,
क्यूकर धयान लगाऊँ मै,
जिसनै करदे दूखी गरीबी,
वो के करकै खाले माँ,
इस तंग हाली जिन्दगी से तू,
मुझको आज बचाले माँ।।
कई कई दिन मनै टूक ना मिलते,
भुख कालजा खावै स,
टोटे न करया हाल बूरा माँ,
याद नही कूछ आवै स,
जिसकै खुद का नाम याद ना,
क्युकर वो तनै धयाले माँ,
इस तंग हाली जिन्दगी से तू,
मुझको आज बचाले माँ।।
पाट कालजा आवै सै सब,
छोडगे रिस्तेदार मनै,
के फायदा इसी जिन्दगी जी कै,
बेसक जी त मार मनै,
कहै नरेन्द्र सासरोलीया,
स जिन्दगी तेरे हवाले माँ,
इस तंग हाली जिन्दगी से तू,
मुझको आज बचाले माँ।।
छोड़ जगत ने आया दर पे,
अपणे गले लगाले माँ,
इस तंग हाली जिन्दगी से तू,
मुझको आज बचाले माँ।।
गायक – लक्की पिचौलिया।
लेखक – नरेन्द्र सासरोलीया।
प्रेषक – गजेन्द्र स्वामी।
9996800660