सांची थारी सकलाई जी,
सांगलपति महाराज,
तुम्हे दुनियां शीश नवाती रे।।
तर्ज – पंख होते तो।
संत यहा पर धूणी तपे,
सांझ सवेरे अलख जगे,
जगदम्बा की ज्योति जगे है,
निरखत ज्योति कष्ट कटे।।
बड़े भाग से गुरु मिले,
कह दे अपने सारे गिले,
इनके डर से यमदूत हिले,
गुरु कृपा से मोक्ष मिले।।
सेवा यहा पर सर्वोपरि,
जाती वर्ण में भेद नहीं,
नेम और नीति कर लो सही,
महापुरुषों ने यही कही।।
बंशीदास जी सतगुरु पाये,
काल मौत से आप बचाये,
ओमदास थांका गुण गाये,
हिवड़े में सन्तोष धराये।।
सांची थारी सकलाई जी,
सांगलपति महाराज,
तुम्हे दुनियां शीश नवाती रे।।
स्वर – विनोद बामणिया लोसल।
प्रेषक – विनोद मेघवाल।
8094953386