इतना बता दे दाती,
तेरा कैसे दर्श पायें,
दरशन की लालसा माँ,
मेरे दिल में है समाये।।
तर्ज – तुझे भूलना तो चाहा।
खाया है मैंने धोखा,
अपनों से जिन्दगी में,
सुख चैन शान्ति मिलती,
बस तेरी बन्दगी में,
चरणों में बैठ तेरे,
तेरा नाम गुनगुनायें,
इतना बतादे दाती,
तेरा कैसे दर्श पायें।।
मुझको ना चाहिए माँ,
दुनिया के हीरे मोती,
मन में यही तमन्ना,
गर पास मेरे होती,
बनकर तेरा पुजारी,
सेवा तुम्हारी चाहें,
इतना बतादे दाती,
तेरा कैसे दर्श पायें।।
दर-दर है क्यों भटकता,
मंदिर बना ले मन को,
बाती बना ले खुद की,
ज्योति का पात्र तन को,
श्रद्धा से जो जलाये,
कभी ज्योत बुझ ना पाये,
इतना बतादे दाती,
तेरा कैसे दर्श पायें।।
दीनों के दर्दे दिल में,
माँ की दिखेगी सूरत,
स्वारथ के चाहतों की,
माँ को नहीं जरूरत,
दरशन की तेरे इच्छा,
‘परशुराम’ को सताये,
इतना बतादे दाती,
तेरा कैसे दर्श पायें।।
इतना बता दे दाती,
तेरा कैसे दर्श पायें,
दरशन की लालसा माँ,
मेरे दिल में है समाये।।
लेखक एवं प्रेषक – परशुराम उपाध्याय।
श्रीमानस-मण्डल, वाराणसी।
93073 86438