मुझको बना दो मोर किशोरी,
कुक कुक तुमको रिझाऊं मैं।।
तर्ज – गोरी है कलैया।
रज राजधानी को माथे से लगाउँ मैं,
चरणामृत यमुना जल कंठ को पाउ मैं,
छोटे छोटे पग से किशोरी,
बरसाना दौड़ा चला आउ मै,
मुझ को बनादो मोर किशोरी,
कुक कुक तुमको रिझाऊं मैं।।
लता पता वृक्षों के छाँव तले बैठ के,
खग मृग संग लौटूं रमण की रेत पे,
बृजवासीन के सबरे खेतन में,
राधा नाम मोती उगाउ मै,
मुझ को बनादो मोर किशोरी,
कुक कुक तुमको रिझाऊं मैं।।
रसिकन संतो को परिकरमा मार्ग में,
करू रोज़ पँखा उनको तपती घाम में,
संत रसिक की मीठी वाणी,
सुन सुन आपको सुनाऊ मै,
मुझ को बनादो मोर किशोरी,
कुक कुक तुमको रिझाऊं मैं।।
इतनी सेवा बस भाग्य में लिखदो,
श्री वृंदावन का वास ही लिखदो,
‘चेतन’ मन को निर्मल कर दो,
श्यामा श्याम दर्शन पाउ मै,
मुझ को बनादो मोर किशोरी,
कुक कुक तुमको रिझाऊं मैं।।
मुझको बना दो मोर किशोरी,
कुक कुक तुमको रिझाऊं मैं।।
Lyrics & Singer – Kishoridas_Chetan