सुनकर आया श्याम धनी तुम,
सबके काम बनाते हो,
हार के जो भी दर पर आया,
उसको सेठ बनाते हो।।
तर्ज – मैं के बोलूं श्याम धणी तने।
मेरे रोज पड़ोसी बोले,
हम श्याम के दर पर जाते है,
खाटू जाकर बाबा को,
हम सुंदर भजन सुनाते है,
इतने से काम के बदले तुम,
भक्तों पर माल लुटाते हो,
हार के जो भी दर पर आया,
उसको सेठ बनाते हो।।
मैंने सोच लिया था पहले,
अब के ग्यारस पर जाऊंगा,
मेरा जाते ही काम बनेगा,
जब अर्जी वहां लगाऊंगा,
मुझे लगे है श्याम धनी तुम,
मेरी बारी पे देर लगाते हो,
हार के जो भी दर पर आया,
उसको सेठ बनाते हो।।
मैं कितनी बार ही आया,
अब मेरा काम बना दे,
तू जल्दी से झोली भर दे,
काहे नखरे दिखलावे,
भगत तेरा दर दर भटके,
तुम बैठे मौज उड़ाते हो,
हार के जो भी दर पर आया,
उसको सेठ बनाते हो।।
सुनकर आया श्याम धनी तुम,
सबके काम बनाते हो,
हार के जो भी दर पर आया,
उसको सेठ बनाते हो।।
लेखक व गायक – गोपाल प्रजापति मेरठ।
8533026845