प्रयागराज की धरती पर,
आई यह पावन बेला है,
छोटी मोटी बात नहीं,
यह महाकुंभ का मेला है,
साधु संतों का संगम तट पर,
संगम अलबेला है।।
वनों कंदराओं से अंधेरी गुफाओं से,
आए है चल के यह ऊंची शिखाओं से,
तन पर ना कोई वस्त्र है भस्म रमाए है,
हाथ में त्रिशूल और सर पर जटाएं है,
यह भक्त महाकाल के,
अपनी ही धुन में रहते है,
इनसे पंगा मत लेना भाई,
इन्हें नागा साधु कहते है।।
घोर तपस्वी ये महा हठ योगी है,
चाहे तो मुर्दे में भी प्राण डाल दें,
मुख से जो बोले वह हो जाए पल में,
इनका कहा तो स्वयं,
महाकाल भी ना टालते।।
रूप अनोखा देख के इनका,
कहीं डर न जाना तुम,
जहां मिले उनके चरणों में,
अपना शीश झुकाना तुम,
हिंदुत्व के रक्षक,
सनातन की जान है,
उनके “उत्तम” चरणों में,
मेरा दंडवत प्रणाम है।।
यह मेला साधारण मेला ना,
यह 12 वर्ष में आता है,
त्रिवेणी में हर कोई फिर,
डुबकी लगाना चाहता है,
अमृत स्नान करने को,
साधु आते पूरी शान से,
रुप निराला वेष निराला,
सनातन की पहचान ये,
कोई हाथी,कोई घोड़े,
कोई रथ असवार है,
अखाड़ों से आए साधु मेले का श्रृंगार है,
यही हैं जो शोभा कुंभ की बढ़ाते हैं,
मेले में कई लोग तो,
बस इनको ही देखने आते है।।
महाकुंभ का मेला यह,
सनातन की शान बढ़ाता है,
इस मेले सा कोई मेला ना,
उत्तम तुमको बतलाता है,
हिंदुत्व का संगम त्रिवेणी,
बस संगम नहीं धाराओं का,
मूल है यही सनातन की,
इन फैली हुई शाखाओं का,
कुंभ में कर स्नान सभी जन,
वर मुक्ति का पाते है,
मानव ही नहीं स्नान को,
कुंभ में देवी देव भी आते हैं
भोलेनाथ की कृपा जो,
पाना चाहता है तू सदैव,
तू लगा के डुबकी त्रिवेणी में,
बोल दे हर हर हर हर महादेव।।
प्रयागराज की धरती पर,
आई यह पावन बेला है,
छोटी मोटी बात नहीं,
यह महाकुंभ का मेला है,
साधु संतों का संगम तट पर,
संगम अलबेला है।।
गायक व लेखक – राजू उत्तम।
9872573004
म्यूजिक – सौरव कोली।