भगतां बिन गद्दी सुन्नी,
गद्दी बिना भगत हों सुन्ने,
लाग्गै ना रोणक दरबार म।।
गद्दी के लायक वोह स,
तपया जो भजन म्ह,
मोह माया लालच जिसके,
कती ना मन म,
गद्दी को शीश झुकाता,
गुरुवर फेर लाज बचाता,
ऊँची या शान रहै संसार म।।
गद्दी की शोभा बढ़ज्या,
बैठा भगत हो,
मान सम्मान भगत का,
गद्दी इज्जत हो,
आसन और पगड़ी सर की,
होती बख्शीश हर की,
मिलती है सत्य के बाजार म।।
सच्चे भक्त सदा,
करया करैं नेकी,
विनती करैं परमपिता त,
सबके भले की,
करकै सब दूर बुराई,
मुख प राक्खै सच्चाई,
पूर्ण हो सब ढालां संस्कार म।।
सुन्ना हो दीवा जैसे,
घी बात्ती तेल बिना,
सुन्नी तेरी कलम गजेन्द्र,
शब्दों के मेल बिना,
अन्न बिन चाल्लै ना चक्की,
लय सुर बिना सजै ना लक्की,
गाणा सजेगा सुर के तार म।।
भगतां बिन गद्दी सुन्नी,
गद्दी बिना भगत हों सुन्ने,
लाग्गै ना रोणक दरबार म।।
गायक – लक्की भारद्वाज पिचौलिया।
9034283904
लेखक – गजेन्द्र स्वामी कुड़ल्याण।
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