चले विप्र हरि नाम को जपते,
दीनानाथ के धाम,
जपते राधे राधे श्याम,
जपते राधे राधे श्याम।।
(सुदामा प्रसंग भजन)
डगमग डगमग देह डोलत है,
रही रहीं पांव पिराय,
द्वारिका पूरी इतनी दूर है,
कुछ भी समझ न आय,
कभी प्रिय के प्रेम में पागल,
कभी ये जपते नाम,
जपते राधे राधे श्याम,
जपते राधे राधे श्याम।।
दीनों के दुख हरने वाले,
कण कण में तू समाया,
कही धूप है कहीं है छाया,
अद्भुत तेरी माया,
भक्ति भाव से जो ही भजता,
करते उसके काम,
जपते राधे राधे श्याम,
जपते राधे राधे श्याम।।
चले विप्र हरि नाम को जपते,
दीनानाथ के धाम,
जपते राधे राधे श्याम,
जपते राधे राधे श्याम।।
स्वर / रचना – सतीश चंद्र जी शास्त्री।
9839186838