शिव पार्वती पंचहताई कथा,
दोहा – गंग भंग दो बहन है,
रहती शिव के संग,
जिन्दो को तारण भंग है,
मुर्दों को तारण गंग।
यहां पर न्याय सत्य का होता,
सुनो सती महारानी,
अब अलग दूध का दूध करें और,
अलग पाणी का पाणी,
यहां पाते हैं दंड अन्याई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
न्याय सत्य का देखे बिना ना,
अपनी ढोड़ चुकाऊ,
अब जल्दी हो तो आप पधारो,
हाथ जोड़ सीर नाऊ,
हट तू मत कर सती लुगाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
नकली रूप बना शिव शंकर,
एक जाट घर आए,
जैसा रूप धनी था घर का,
वैसा रूप बनाए,
शिवजी कुंडी जार बजाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
खोल कीवाड़ जाटणी जानी,
बोली आज तो जल्दी आए,
जाट कहे सुण आज जाटणी,
मुझको भूख सताए,
रोटी जल्दी गाल लुगाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
खोल कीवाड़ जाटणी देखी,
एक जाट दो रूप,
एक रूप दो देख जाट का,
गई जाटणी सुख,
हो रही दोनों बीच लड़ाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
असली जाट आवाज लगाई,
उठ पटेलण उठ,
अब प्यास को मारियो घलो सुख रहियो,
पानी पिला दो घूट,
जाटणी भीतर से गुर्राई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
भाग जाटणी गांव बीच,
पंचों को जाय बताई,
न्याय करो अन्याय हो रहा,
किसकी रहूं लुगाई,
लड़ रहे दोइ पुरुष घर माही,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
पंचों ने आवाज लगाई,
बुलवाया सोचंदा,
एक रूप दो देख जाट का,
पड़ गया भारी फंदा,
याने ले चलो पंचहताई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
पंचों ने मिल किया फैसला,
घड़ा एक मंगवाओ,
तीन बार जो गुसे घड़े में,
उसको घर संभलाओ,
बात सब पंचों के मन भाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
नकली बोला तीन बार क्या,
तीस बार घुस जाऊं,
अब मेरा घर और मेरी लुगाई,
पंचों को बतलाऊं,
दो बार गुसे घड़े के माही,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
तीजी बार घुसे शिव शंकर,
ऊपर दे दिया ढकना,
भुल जाएगा किसी का घर और,
किसी की नारी रखना,
देख कर पार्वती घबराई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
लकड़ी मंगाओ चिता बनाओ,
घड़ा बीच में धरदो,
इसमें जींद बड़ा है भारी,
जल्दी आग लगादो,
सुण कर पार्वती घबराई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
असली रूप बनाकर बोली,
न्याय मेरा भी करज्यो,
मेरे पति के खातिर मुझको,
घड़ा दान में दीज्यो,
कहती पार्वती शरमाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
पार्वती यु केवण लागी,
इसमें अचरज भारी,
जिंद नहीं है इसी घड़े में,
है भोले भंडारी,
कहती पार्वती बीलमाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
असली रूप बनाकर बोले,
शिव भोले भंडारी,
कलयुग में अन्याय करेंगे,
पंच लोग अन्याई,
कविता राधेश्याम बनाई,
मान सती तू मान,
शिवजी बार बार समझाइ,
मान सती तू मान।।
गायक – रामकुमार मालूणी।
प्रेषक – कन्हैया लाल कांकर।
8817717859