मैं तप की महिमा गाऊं,
जयकार लगाऊं,
तपस्वी अमर रहो,
मैं घर को सजाऊँ,
मैं पलके बिछाऊँ,
चरण जहाँ तपस्वी रखे,
मैं मोतियों से वधाऊँ,
बलिहारी जाऊँ,
तपस्वी अमर रहो।।
तर्ज – मैं कोई ऐसा गीत गाऊँ।
आहार के बने जो त्यागी,
उपवास के बने वो रागी,
तप की ज्योत दिल मे जागी,
ऐसे तपस्वी बड़भागी,
तप की खुशुब से,
मन ये खिले,
है तप जहाँ पे,
है पुण्य साथ चलता,
वहाँ पे जो भी तप को धारे,
मैं उनको सर झुकाऊं,
तपस्वी अमर रहो।।
क्या लिखूं मैं कैसे सुनाऊँ,
तपस्या की कहानियाँ,
तप किया स्वयं प्रभु ने,
है सन्तो की जुबानियाँ,
“दिलबर” कहे,
कृषिव की जुबां,
के तपस्या से बढ़कर,
न कोई जहाँ में,
तपस्या हो हर घर,
ये भावना में भाऊँ,
तपस्वी अमर रहो।।
मैं तप की महिमा गाऊं,
जयकार लगाऊं,
तपस्वी अमर रहो,
मैं घर को सजाऊँ,
मैं पलके बिछाऊँ,
चरण जहाँ तपस्वी रखे,
मैं मोतियों से वधाऊँ,
बलिहारी जाऊँ,
तपस्वी अमर रहो।।
गायक – कृषिव वागरेचा जोधपुर।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365