आओ जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के,
रथड़ा पे चढ़ के,
घोडा पे चढ़ के,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
मोर मुकुट पीतांबर सोहे,
जगत पिता जग को मन मोहै,
सांवली सूरत पे मैं जाऊं सदके,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
कानन कुंडल झिलमिल छलके,
हाथों में भालो पल पल पलके,
मुखड़ा तो तेज जाने सूरज चमके,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
कमर कारंगती लागे अति प्यारी,
बागा की शोभा अति प्यारी,
दाड़ी माही पल पल हीरो चमके,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
श्याम वर्ण जगन्नाथ मेरे दाता,
लाज रखो जग के अन्नदाता,
दर्शन के खातिर मारो मन भटके,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
दिनेश वैष्णव तेरो जस गावे,
भजना की हाजिरी जगदीश में लगावे,
नाव लगा दो पार भवर में अटके,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
आओ जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के,
रथड़ा पे चढ़ के,
घोडा पे चढ़ के,
आयो जगत पिता जगदीश,
रथड़ा पे चढ़ के।।
गायक – कथावाचक दिनेश वैष्णव।
9928253130