आरती श्री बनवारी की,
भागवत कृष्ण बिहारी की।।
भागवत भगवत मंगल रूप,
कथामय मंजुल मधुर अनूप,
पितामह मुखरित प्रथम स्वरूप,
विराजत नारद मनमय कूप,
कृष्ण रसदान,रसिक जन प्राण,
करत बुधगान,
पुराण सब परम महारी की,
भागवत कृष्ण बिहारी की,
आरती श्री बनवारी कीं,
भागवत कृष्ण बिहारी की।।
भागवत हरीयश गुणगण पुंज,
व्यास प्रतिपादित भगवत कुंज,
देव सुख निशदिन गावत गुंज,
सूत मुनि नैमिष यह रस भुंज,
सुनत भव पास, तुरत वह नाश,
मिलत हरिवास,
कथा श्री भागवत धारी की,
भागवत कृष्ण बिहारी की,
आरती श्री बनवारी कीं,
भागवत कृष्ण बिहारी की।।
भागवत कृष्णामृत पावन,
गोकर्ण प्रतिपल मनभावन,
परीक्षित हरि रस विलसावन,
कथाश्रव उद्धव सरसावन,
करत रसपान, होत गुणवान,
मिलत सनमान,
शरण अब भागवत प्यारी की,
भागवत कृष्ण बिहारी की,
आरती श्री बनवारी कीं,
भागवत कृष्ण बिहारी की।।
आरती श्री बनवारी की,
भागवत कृष्ण बिहारी की।।
रचना – ज.गु. निम्बा. श्री श्री जी महाराज।
गायक एवं प्रेषक – सर्वेश्वर जी शरण।