आरती उतारूं देवा,
गणपति थारी,
बाधा तो हर लीजो,
सारी हमारी।।
आरती उतारूं मै तो,
होके अति आरती,
मुखड़ा पे दई दीजो,
रति रे तिहारी !!१!!
गंगाधर से पिता तिहारे,
शैलसुता महतारी,
पत्नी दोनो चँवर डुलावे,
मूसा की सवारी !!२!!
रणथ भवर में वास तिहारो,
भीड़ हटावे भारी,
बुध का दिन थारी पूजा होवे,
लाडू चढ़ावे चारी !!३!!
सिन्दूरी सो वदन तिहारो,
रक्त वसन परिधानी,
रक्त चन्दन को टीको सोहे,
रक्त पुष्प सिर धारी !!४!!
प्रथम पूज्य स्थान तिहारो,
नारायण वरदानी,
सिन्दूरा सुर को मारि गिरायो,
तब से सिन्दूर धारी !!५!!
कोई भी काम में थने मनावे,
विघ्न टले है भारी,
जो कोई श्रद्धा भक्ति से ध्यावे,
फल पावे वो चारी !!६!!
आरती उतारूं देवा,
गणपति थारी,
भक्ति तो दई दीजो,
चरणा री थारी।।
रचनाकार – श्री सुभाष चन्द्र त्रिवेदी।
प्रेषक – आशुतोष त्रिवेदी।