आशीष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं,
तेरे वृन्दावन में बसकर,
तेरे वृन्दावन में बसकर,
मैं श्याम अमर हो जाऊं,
आशिष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं।।
मैं जाऊं जिधर मैं देखूं जिधर,
वृन्दावन तेरा आए नज़र,
मेरी रग रग में बस तू ही बसा,
तेरी चाहत का है सारा असर,
कुछ और ना देखे अँखियाँ,
कुछ और ना देखे अँखियाँ,
तेरे ही दर्शन पाऊं,
मैं श्याम अमर हो जाऊं,
आशिष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं।।
इन होंठो पर तेरा नाम रहे,
यही काम मुझे बस श्याम रहे,
अब परवाह नहीं कुछ भी जग की,
केवल तेरा ही ध्यान रहे,
मरते दम तक मैं मोहन,
मरते दम तक मैं मोहन,
तेरे भजनो को ही गाउँ,
मैं श्याम अमर हो जाऊं,
आशिष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं।।
बिन तेरे मेरा कोई मोल नहीं,
मेरा कोई ठिकाना और नहीं,
इन साँसों में सरगम तुमसे,
मेरा खुद का फ़साना कोई नहीं,
कुछ और ना मांगे ‘शर्मा’,
कुछ और ना मांगे ‘शर्मा’,
केवल तुझमें खो जाऊं,
मैं श्याम अमर हो जाऊं,
आशिष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं।।
आशीष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं,
तेरे वृन्दावन में बसकर,
तेरे वृन्दावन में बसकर,
मैं श्याम अमर हो जाऊं,
आशिष मुझे दो इतना,
तेरे चरणों में खो जाऊं।।
स्वर – रजनी जी राजस्थानी।