आवणो पड़ेला कारज सारणों पड़ेला,
श्लोक – गुरु गोविंद दोई खड़े,
किसके लागू पाय।
बलिहारी गुरु देव ने,
जो गोविन्द दियो बताये।।
आवणो पड़ेला कारज सारणों पड़ेला,
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
पहला युगा में भक्त प्रहलाद आया,
पांच करोड़ तपसी तारना पड़ेला।
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
दूजा युगा में राजा हरिचन्द्र आया ।
सात करोड़ तपसी तारना पड़ेला।
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
तीजा युगा में राजा जेठल आया ।
नव करोड़ तपसी तारना पड़ेला।
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
चौथा युगा में राजा बलीचंद आया,
बारह करोड़ तपसी तारना पड़ेला।
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
चारो युगों रो मंगल रूपा बाई गावे,
थाली में बाग़ लगावनो पड़ेला।
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
आवणो पड़ेला कारज सारणों पड़ेला ,
आज री जागन में सतगुरु आवणो पड़ेला।।
“श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा प्रेषित”