आया तेरी शरण में यही सोचकर,
सिंधु संसार से हम उबर जाएंगे,
आपने गर हमें नाथ ठुकरा दिया,
आप ही सोचिये हम किधर जाएंगे।।
आपका नाम मोती है लेकर उसे,
प्रेम के तार में गूंथता रह गया,
आपने अपनी नज़रे अगर फेर ली,
सारे मोती जमीं पर बिखर जाएंगे,
आया तेरीं शरण में यही सोचकर।।
देखता हूँ सदा आपको पास में,
आप ही ही है बसे मेरी हर साँस में,
आप ही तो मसीहा अनाथों के है,
हमको ठुकराए तो किसके घर जाएंगे,
आया तेरीं शरण में यही सोचकर।।
गलतियां हम किये होंगे इंसान है,
माफ करना प्रभु आपका काम है,
हम है ‘राही’ भटकते रहे उम्रभर,
साथ दे दो तो शायद सुधर जाएंगे,
आया तेरीं शरण में यही सोचकर।।
आया तेरी शरण में यही सोचकर,
सिंधु संसार से हम उबर जाएंगे,
आपने गर हमें नाथ ठुकरा दिया,
आप ही सोचिये हम किधर जाएंगे।।
स्वर – पूज्य राजन जी महाराज।
रचना – श्री तारकेश्वर मिश्र ‘राही’ जी।