क्यों अपनों पे तू इतराए,
जाएगा कोई संग ना,
अब मान भी ले मनवा,
मान भी ले,
मान भी लो मनवा।।
तर्ज – अब आन मिलो सजना।
जीव जन्तु से मानव बनाया,
कर कृपा फिर नाम लखाया,
कभी सन्तों के ढिग तू न आया,
मिली वस्तु को दाग लगाया,
हरि नाम का रंग है सांचा,
दूजा कोई रंग ना,
अब मान भी लो मनवा।।
यहां दौलत के सब है पुजारी,
बड़ी मतलब की है दुनिया दारी,
बिन मतलब के कोई न पूछे,
चाहे सुत हो या नारी तुम्हारी,
समय अनोखा फिर न मिलेगा,
करले जो है करना,
अब मान भी लो मनवा।।
आए विपदा तुम्हारे जो सर पे,
आएगा न कोई तेरे घर से,
मांग न लें कहीं तू खजाने,
आएगा न कोई इस डर से,
मुक्त किया है गुरु ने तुझको,
बंधन में ”शिव” बंध ना,
अब मान भी लो मनवा।।
क्यों अपनों पे तू इतराए,
जाएगा कोई संग ना,
अब मान भी ले मनवा,
मान भी ले,
मान भी लो मनवा।।
लेखक / प्रेषक – शिव नारायण जी वर्मा।
7987402880
गायक – मनोज जी।