अब के फागुन बरसाने में,
ऐसी धूम मचाएंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे,
जिस रंग रंग दे सांवरिया,
हम उसी रंग रंग जाएंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे।।
जैसे भंवरा हो मतवाला,
झूमे फूलों कलियों में,
गोपियों पीछे कृष्ण कन्हैया,
घूमे वृंदावन गलियों में,
संग कान्हा के वृंदावन में,
हम भी उधम मचाएंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे।।
पकड़ के राधा रंग दे सांवरिया,
ऐसा दृश्य सुहाना हो,
हाथ में लट्ठ लिए राधा हो,
और आगे आगे कान्हा हो,
ऐसी अद्भुत लीला पर,
हम तो बलिहारी जाएंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे।।
लगी जो लगाने रंग राधा,
आगे से कन्हैया बोल पड़े,
ऐ राधा मेरा रंग काला,
काले पर रंग न कोई चढ़े,
इठलाती मुस्काती राधा ने,
फिर ऐसा रंग डाला,
और काले रंग वाले को,
अपने प्रेम के रंग में रंग डाला,
और ऐसा डाला रंग गहरा,
जो हर पल बढ़ता जाए है,
जितना छुड़ाना चाहे कान्हा,
उतना ही चढ़ता जाए है,
एक मजे की बात है उत्तम,
राजू तुमको बतलाता है,
अब जो भी चाहे रंग डालो,
वो काला उसी रंग रंग जाता है,
बरसाने वाली से वही रंग,
प्रेम का हम भी चाहेंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे।।
अब के फागुन बरसाने में,
ऐसी धूम मचाएंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे,
जिस रंग रंग दे सांवरिया,
हम उसी रंग रंग जाएंगे,
सबको नाच नचाए जो,
हम उस संग रास रचाएंगे।।
गायक / लेखक – राजू उत्तम।
संगीत – गगन सिद्धू।