अगर देना किशोरी जू,
मुझे इतनी सदा देना,
मरुँ महलों की चौखट पे,
मुझे इतना सिला देना,
अगर देना किशोरी जु।।
बना के आइना मुझको,
किसी कोने लगा लेना,
की जब श्रृंगार करना हो,
तो आँचल में बिठा लेना,
तेरे बलिहार जाउंगी,
तेरे बलिहार जाउंगी,
जरा पलके उठा लेना,
अगर देना किशोरी जु।।
करो भोजन तो थाली या,
कटोरी ही बना देना,
तुझे ठंडी हवा दूंगी,
चवर डोरी बना देना,
हटाना ना नजरों से,
हटाना ना नजरों से,
मुझे ऐसा छुपा लेना,
अगर देना किशोरी जु।।
तेरे भक्तों के चरणों से,
भले ये प्राण घुट जाएँ,
बस इतनी नजर रखना,
कहीं सेवा ना छुट जाए,
बना पत्थर ‘हरीदासी’,
बना पत्थर ‘हरीदासी’,
को महलों में लगा लेना,
अगर देना किशोरी जु।।
कभी मेहन्दी कभी बिछुए,
कभी पायल बना देना,
चरण रज चूम पाउँ मैं,
मुझे काबिल बना देना,
मैं नाचूंगी नुपुर बनके,
मैं नाचूंगी नुपुर बनके,
तू जैसा भी नचा लेना,
अगर देना किशोरी जु।।
भिखारी हूँ मैं जन्मों का,
मेरा तो काम है कहना,
तुम्हारे मन को भाए जो,
वही तुम फैसला करना,
रहूँगा राजी रजा में मैं,
रहूँगा राजी रजा में मैं,
मुझे ऐसी अदा देना,
अगर देना किशोरी जु।।
अगर देना किशोरी जू,
मुझे इतनी सदा देना,
मरुँ महलों की चौखट पे,
मुझे इतना सिला देना,
अगर देना किशोरी जु।।
स्वर – साध्वी पूर्णिमा दीदी जी।