ऐसा देश दीवाना संतो,
दोहा – शब्दा मारया मर गया,
शब्दों छोड़या राज,
जो नर शब्द विवेकिया,
भाई उण रा सरिया काज।
ऐसा देश दीवाना संतो,
ऐसा देश दीवाना,
भेळा हैं पर भिळता नाही,
गुरु मुखी ज्ञानी जाणा।।
तीर्थ करूँ न जप तप साजू,
नही धरूँ मैं ध्याना,
ऐसा होय खलक में खेलूं,
नही मूर्ख नहीं स्याणा।।
पग बिना पन्थ नेण बिना निरखु,
बिना श्रवण सुण लेणा,
बिना घ्राण वो लेत सुगंधी,
बिना रसना रस पीणा।।
सहज सरोवर सिवरत हंसा,
पर बिन किया पियाणा,
मान सरोवर मोती मुकता,
निर्मल नीर निवाणा।।
ईयू जाणियो जगदीश जुगत कर,
पिंड बिन पुरुष पुराणा,
कह बन्नानाथ सकल में व्याप्त,
घाट बाट नहीं कहणा।।
ऐसा देश दीवाना संतों,
ऐसा देश दीवाना,
भेळा हैं पर भिळता नाही,
गुरु मुखी ज्ञानी जाणा।।
गायक – प्रेमनाथ जी।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052
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