ऐसा मेरा सतगुरू कहे समझाया,
जागी सुरत मेहर सतगुरू कि,
जब प्रीतम दरसाया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
सतगुरू सेन दया कर दिनी,
मन का मेल मिटाया,
हुतू झाड काट कियो क्याने,
सोहम राह बताया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
अडद ऊडद बिच जोय सुखमणा,
तां पर बंद लगाया,
बंकनाल ऊलटा होय चाल्या,
सतगुरू मर्ग बताया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
पांचो मु्द्रा झुकी ऊरद पर,
तंत पांचो ऊलटाया,
नवसो नाड धमकती चाल्यो,
रोम रोम घरनाया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
अगम भोम जहा गंगन मंडल हे,
सुरती का बंद लगाया,
तां के आगे छेक दसवा को,
मानसरोवर न्हाया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
तां के आगे सात सुन हे,
श्वेत फुल दरसाया,
तहा नवल जी चरणा मे लोटे,
गुरू करता जी से पाया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
ऐसा मेरा सतगुरू कहे समझाया,
जागी सुरत मेहर सतगुरू कि,
जब प्रीतम दरसाया,
ऐसा मेरा सतगुरू कहें समझाया।।
गायक – धनराज जोशी।
प्रेषक – दिनेश दास जी महाराज।
शाहपुरा, 8290236813