ऐसी भक्ति है सतगुरु की,
नर से नारायण करदे,
नारायण करदे,
नर से नारायण करदे,
ऐसी भक्ति हैं सतगुरु की,
नर से नारायण करदे।।
माया अविध्या ईस जीव को,
दोय लगे पर्दे,
द्वेत उपाधि बात करें,
ब्रह्म लक्ष्य निज धरदे,
ऐसी भक्ति हैं सतगुरु की,
नर से नारायण करदे।।
दृढ़ अपरोक्ष जो तत्वों मसी का,
लक्ष्य भाव भर दे,
जीव भाव कर दूर हीनता,
चेतन पद वर दे,
ऐसी भक्ति हैं सतगुरु की,
नर से नारायण करदे।।
देह अभीमान शीश जिज्ञासु,
गुरुचरणा दर्दे,
जीवन मुक्ति रहे निज पद में,
धर नही फिर दे,
ऐसी भक्ति हैं सतगुरु की,
नर से नारायण करदे।।
चेतन भारती गुरु को,
शिष्य अगर वचन सर्दे,
भारती पूर्ण सारी व्यापी,
गुरु सेज हरदे,
ऐसी भक्ति हैं सतगुरु की,
नर से नारायण करदे।।
ऐसी भक्ति है सतगुरु की,
नर से नारायण करदे,
नारायण करदे,
नर से नारायण करदे,
ऐसी भक्ति हैं सतगुरु की,
नर से नारायण करदे।।
गायक – श्री पुरण भारती जी महाराज।