अजर अमर घर ताली लागी,
दोहा – सतगुरु ऐसा न किजिए,
जैसे झाडी बोर,
ऊपर लाली प्रेम री,
वे भीतर बड़ा रे कठोर।
सतगुरु ऐसा किजिए,
दुखे दुखावे नाय,
पान फूल तोडे नही,
वो रेवे बगीचा माय।
अजर अमर घर ताली लागी,
कैसी नाथ गुराया ए हा,
अरे अजर अमर घर ताली लागी,
कैसी नाथ गुराया ए हा,
अरे सुन सुन मस्त भया मन मेरा,
सुन सुन मस्त भया मन मेरा,
धुन मे रेके समाया रे संतो,
अजर अमर घर पाया ए हा,
अरे भया दीवाना हुआ मस्ताना,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
जग री तो राय भूलाया रे संतो,
अजर अमर घर पाया ए हा।।
अरे सतलोक में सत्तरा वासा,
सत्त रे लोक में सत्त रा वासा,
मोह ममता री माया ए हा,
अरे सत्त रे लोक में सत्त रा वासा,
मोह ममता री माया ए हा,
अरे चांद सूरज पवन नही पानी,
चांद सूरज पवन नही पानी,
काल पता नही पाया रे संतो,
अजर अमर घर पाया ए हा,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
जग री तो राय भूलाया ए हा।।
अरे चौदह लोक में काल रा वासा,
चौदह लोक काल रा वासा,
मरे कालको माया ए हा,
अरे चौदह लोक में काल रा सारा,
मरे कालको माया ए हा,
अरे काल दुकाल दोनो ही सखीया,
काल दुकाल दोनो ही सखीया,
गागर अलख जगाया रे संतो,
अजर अमर घर पाया ए हा,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
जग री तो राय भूलाया ए हा।।
अरे आपु ही आप नही कोई दूजा,
आपु ही आप कोई नहीं दूजा,
नहीं धूप नही छाया ए हा,
अरे आपु ही आप नहीं कोई दूजा,
नहीं धूप नही छाया ए हा,
अरे कहे हेमनाथ लिखे हद महिमा,
कहे हेमनाथ लिखे हद महिमा,
सायर लेहर समाया रे संतो,
अजर अमर घर पाया ए हा,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
भया दीवाना हुआ मस्ताना,
जग री तो राय भूलाया ए हा।।
गायक – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
9640557818