अपने दिल का दरवाजा,
हम खोल के सोते है,
सपने में आ जाना कान्हा,
ये बोल के सोते है,
अपने दील का दरवाजा,
हम खोल के सोते है।।
सपने में आए तू,
कही आँख ना खुल जाए,
बाते करते करते,
दिन रात निकल जाए,
इस दुनिया से हर नाता,
हम तोड़ के सोते है,
अपने दील का दरवाजा,
हम खोल के सोते है।।
सपना टूटे मेरा,
सपने में खो जाऊँ,
सपने की चाहत में,
मैं फिर से सो जाऊँ,
जीवन की सारी ईच्छा,
हम छोड़ के सोते है,
अपने दील का दरवाजा,
हम खोल के सोते है।।
ये प्रेम हमारा श्याम,
बस इतना बढ़ जाए,
सपने में आने की,
तुझे आदत पड़ जाए,
‘बनवारी’ इन हाथो को,
हम जोड़ के सोते है,
अपने दील का दरवाजा,
हम खोल के सोते है।।
अपने दिल का दरवाजा,
हम खोल के सोते है,
सपने में आ जाना कान्हा,
ये बोल के सोते है,
अपने दील का दरवाजा,
हम खोल के सोते है।।
स्वर – सौरभ मधुकर जी।