अरे सूण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
अरे सुमता कुमता नार,
दोई पटराणी,
अरे दोन्या रो ओर सबाव,
सन्त पछाणी,
अरे सुण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
अरे आ गई कुमता नार,
कुमता कर गई,
मने लाग्यो चौरासी माय,
जनम डुबो गई,
अरे सुण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
अरे आ गई सुमता नार,
सुद बुध दे गई,
मने तारयो चौरासी माय,
जनम सुधार गई,
अरे सुण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
अरे किणने सुणाउ गूरू ज्ञान,
उठ उठ भागे,
ज्यारा हिरदा बडा़ कठोर,
रंग नही लागे,
अरे सुण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
अरे नाभि कमल रे माय,
गंगा ढल गई,
अरे आडा उड़द रे बीच,
गंगा ढल गई,
अरे केह्वे दास कबीर,
भक्ति करणी,
अरे सुण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
अरे सूण म्हारा मनवा वीर,
एडी नहीं करणी,
अरे जल ऊंडो संसार,
दोरो तिरणो,
अरे माया मोटी जाण,
गरभ नई करणो रे।।
स्वर – दिलीप जी गवैया।
प्रेषक – नारायण रेगर 9549365704,