खुद के लिए कुछ भी,
कभी ना करता है,
बेटो की खुशियों की,
खातिर मरता है,
बोझ बेटा गमों का,
जब ढोता है,
बाप भी छुप के रोता है,
बाप भी छुप के रोता हैं।।
तर्ज – आदमी खिलौना है।
बेटा नहीं है जानता,
क्या होता है त्याग,
जिस मां की तू पूजा करता,
बाप है उसका सुहाग,
सह के दुःख,
बीज खुशियों के बोता है,
बाप भी छुप के रोता हैं,
बाप भी छुप के रोता हैं।।
मैंने देखा मैंने जाना,
मेरी समझ में आया,
जिसमे है परिवार ख़ुशी,
बस वही है बाप का साया,
टूटकर जो माला पिरोता है,
बाप भी छुप के रोता हैं,
बाप भी छुप के रोता हैं।।
जब जब आई तुझपे मुसीबत,
पापा तू है पुकारे,
लेकिन क्या सोचा है कभी,
पापा किसे पुकारे,
खुद पे ही बोझ,
दुनिया का ढोता है,
बाप भी छुप के रोता हैं,
बाप भी छुप के रोता हैं।।
तू जिस घर मे रह करके,
सीख रहा है जीना,
नही ईमारत वो मिट्टी की,
बाप का खून पसीना,
तेरे ख्यालों में ‘बेधड़क’,
वो खोता है,
बाप भी छुप के रोता हैं,
बाप भी छुप के रोता हैं।।
खुद के लिए कुछ भी,
कभी ना करता है,
बेटो की खुशियों की,
खातिर मरता है,
बोझ बेटा गमों का,
जब ढोता है,
बाप भी छुप के रोता है,
बाप भी छुप के रोता हैं।।
Singer – Kunwer Nihal
9935668585