बाबोसा की प्राण प्रतिष्ठा हो रही,
अपने हाथों से बाईसा कर रही,
घर मंदिर में आये जब जब बाबोसा,
बरसे बस वहाँ पे ख़ुशियाँ ही खुशियाँ।।
तर्ज – दूल्हे का सेहरा।
संगमरमर की प्रतिमा रुप में ढलती,
प्राण प्रतिस्ठा होने पर स्वयं मुख से बोलती,
बाबोसा मेरे बाबोसा-2,
संगमरमर की प्रतिमा रुप में ढलती,
प्राण प्रतिस्ठा होने पर स्वयं मुख से बोलती,
इस दुनिया में कोई विधान नही ऐसा,
सदियों से होता आज भी है वैसा,
घर मंदिर में आये जब जब बाबोसा,
बरसे बस वहाँ पे ख़ुशियाँ ही खुशियाँ।।
पवित्र भूमि होती जहाँ होती प्रतिस्ठा,
आने वाले हर प्राणी की दृढ़ होती निष्ठा,
बाबोसा मेरे बाबोसा-2,
पवित्र भूमि होती जहाँ होती प्रतिस्ठा,
आने वाले हर प्राणी की दृढ़ होती निष्ठा,
लगता है हरदम जैसे स्वर्ग यहाँ,
बाबोसा हो साथ भला फिर डर कैसा,
घर मंदिर में आये जब जब बाबोसा,
बरसे बस वहाँ पे ख़ुशियाँ ही खुशियाँ।।
मंदिर बने बाबोसा का संकल्प निभाना है,
हर घर मे बाबोसा की मूरत बिठाना है,
बाबोसा मेरे बाबोसा-2,
मंदिर बने बाबोसा का संकल्प निभाना है,
हर घर मे बाबोसा की मूरत बिठाना है,
जहाँ विराजे आकर स्वयं बाबोसा,
‘दिलबर’ कमी न होगी उस घर हमेशा,
घर मंदिर में आये जब जब बाबोसा,
बरसे बस वहाँ पे ख़ुशियाँ ही खुशियाँ।।
बाबोसा की प्राण प्रतिष्ठा हो रही,
अपने हाथों से बाईसा कर रही,
घर मंदिर में आये जब जब बाबोसा,
बरसे बस वहाँ पे ख़ुशियाँ ही खुशियाँ।।
गायक – दीपक मल्होत्रा।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365