बाबोसा ये अर्जी है,
मैं वैसी बन जाँऊ,
जो तेरी मर्जी है।।
लफ्जो का टोटा है,
हो ज़िक्र बाबोसा का,
अश्को से होता है।।
छम छम छम बारिश है,
बाबोसा आ जाओ,
हर बूंद सिफारिश है।।
जो इतना प्यारा है,
बाबोसा हमारा है,
खुद चाँद कहे उससे,
तू चाँद हमारा है।।
बाबोसा बड़ा दयालु,
उसकी खुशबू से ही,
खुशबू में है खुशबू।।
अब और ना मन भटके,
मैं अखियन रख आई,
बाबोसा की चौखट पे।।
कहे मन दर्पण मेरा,
एक ही है ये दोनो,
बाबोसा हो या बाईसा।।
तुझ में घुल जावांगी,
तेरी भक्ति में रंग जावांगी,
तू दूर भले कितना,
मैं आके मिल जावांगी।।
‘दिलबर’ तेरी मर्जी है,
तू चरणों में जगह दे दे,
ये मेरी अर्जी है।।
बाबोसा ये अर्जी है,
मैं वैसी बन जाँऊ,
जो तेरी मर्जी है।।
गायिका – समस्ता बैनर्जी।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
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