बंदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के,
धीरे धीरे जर जर होती,
कंचन तेरी काया,
लेकर तो निर्मल आया था,
फिर क्यों दाग लगाया,
भुला क्यों गीता का ज्ञान,
घर चल दाता के,
बँदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के।।
यम के नगर में जब जायेगा,
लिखने वाला बतलाएगा,
किया न इसने राम भजन,
इसे नरक लोक पहुंचाओ,
हाथ में हथकड़ी पांव में बेड़ी,
कोड़े चार लगाओ,
जारी होगा ये फरमान,
घर चल दाता के,
बँदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के।।
क्यों करता है मन तू ऐसा,
खेल रहा है खेल तू कैसा,
धन संपदा क्षण भंगुर है,
कुछ भी काम न आए,
मुट्ठी बांध के आया जग में,
हाथ पसारे जाएं,
काहे समझे ना नादान,
घर चल दाता के,
बँदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के।।
आज अभी से सुमिरन करना,
संत जनों का मान ले कहना,
ना जाने फिर कब मिलती है,
इतनी सुंदर काया,
परमेश्वर का मंदिर है ये,
पांच तत्व की काया,
अपने ईश्वर को पहचान,
घर चल दाता के,
बँदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के।।
बंदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के,
धीरे धीरे जर जर होती,
कंचन तेरी काया,
लेकर तो निर्मल आया था,
फिर क्यों दाग लगाया,
भुला क्यों गीता का ज्ञान,
घर चल दाता के,
बँदे कर लेना गुणगान,
घर चल दाता के।।
स्वर – स्वामी अशोकानंद जी महाराज।
प्रेषक – डॉ सजन सोलंकी।
9111337188